देखती थी मेरी आंखें.......

जब मां अपने बच्चे को खाना खिलाती थी, तब देखती थी मेरी आंखें।

जब पिता अपने बेटे को क‌‌न्धे पर झुलाता था, तब देखती थी मेरी आंखें।

जब भाई अपने छोटे भाई को रुलाता 

या

जब बहन अपने भाई के हाथों में राखी बांधती, तब देखती थी मेरी आंखें।

जब पूरा परिवार साथ मिलकर हंसता था, तब देखती थी मेरी आंखें।

और बस देखती रहती थी मेरी आंखें।।


जब जमीन के लिए घर तोड़ा जाता था , 

तब देखती थी मेरी आंखें।

जब महंगे कपड़ों को फाड़ दिया जाता था, तब देखती थी मेरी आंखें। 

जब थाली में अन्न छोड़ दिया जाता था 

या

पानी के नल को खुला ही छोड़ दिया जाता था,

तब देखती थी मेरी आंखें।

कभी हंसी से, तो कभी नमी से, देखती थी मेरी आंखें।

और बस देखती रहती थी मेरी आंखें।।


जब मुझे छूने से डरते थे, तब देखती थी मेरी आंखें।

अपना मानने से कतराते थे, तब देखती थी मेरी आंखें।

मैं अनाथ हूं यह कहकर चले जाते 

या

अनाथ शब्द सुनकर कान बंद कर लेते, तब देखती थी मेरी आंखें।

मन में उम्मीद और आंखों में आंसू लिए, देखती थी मेरी आंखें।

और बस देखती रहती थी मेरी आंखें ।।


रोज एक उम्मीद टूटती थी, और देखती थी मेरी आंखें।

रोज़ मैं अकेला ही रह जाता था, और देखती थी मेरी आंखें।

सब मुझे अपने ही लगते थे 

और 

सबको मैं पराया लगता था।

फिर भी ना जाने क्यों, देखती थी मेरी आंखें।

और बस देखती ही रहती थी मेरी आंखें।।

                            

                         - TJ तुषार शर्मा